Taranga Tirth History: तारंगा तीर्थ गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। इस तीर्थ का महत्व न केवल जैन समुदाय के लिए है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, वास्तुकला, और लोकगाथाओं का एक अद्वितीय केंद्र भी है।
यात्रा और तीर्थयात्रा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। इसका इतिहास सदियों पुराना है, और समय के साथ इसमें कई बदलाव आए हैं। पहले तीर्थयात्रा का मुख्य उद्देश्य धार्मिक था, लेकिन आज यह आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अनुभवों का संगम बन गई है। आधुनिक समय में तीर्थयात्रा को एक पर्यटन अनुभव के रूप में भी देखा जाता है।
पुराने समय में तीर्थयात्रा करने से पहले लोग महीनों की तैयारी किया करते थे। यात्रा के साधन सीमित और कठिन थे, इसलिए यात्रियों को अपने भोजन, पानी और अन्य आवश्यक वस्तुओं को पहले से तैयार करना पड़ता था। उस समय तीर्थयात्रा अक्सर पैदल या बैलगाड़ी, घोड़ा, ऊंट, और हाथी जैसे साधनों पर निर्भर करती थी।
भारत में रेलवे का विस्तार 1860 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान, भारत में रेलवे के विस्तार पर जोर दिया गया। मेहसाणा एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने के कारण, यहाँ से रेलवे का मार्ग बनाना महत्वपूर्ण समझा गया।
1880 के दशक में मेहसाणा और तारंगा हिल के बीच रेलवे लाइन का निर्माण शुरू हुआ। इस मार्ग का उद्देश्य न केवल व्यापारिक परिवहन को बढ़ाना था, बल्कि धार्मिक यात्राओं को भी आसान बनाना था।
1887 मेहसाणा-तारंगा रेलवे लाइन का उद्घाटन हुआ। यह एक नैरो-गेज (संकरी लाइन) रेलवे थी, जिसे बाद में ब्रॉड-गेज में परिवर्तित किया गया।
तारंगा हिल, जो जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, अपनी अद्वितीयता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। 12वीं शताब्दी में यहाँ श्री अजीतनाथ भगवान का भव्य जैन मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर और पहाड़ी क्षेत्र तक पहुँचने के लिए 19वीं शताब्दी में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते थे। रेलवे सेवा के आने से उनकी यात्रा अधिक सुलभ हो गई।

पुराने समय की यात्रा सुविधाएँ
तारंगा हिल स्टेशन से तलेटी लगभग 2 मील (लगभग 3.5 किलोमीटर) दूर थी। यात्रियों के लिए स्टेशन के पास एक छोटी धर्मशाला उपलब्ध थी। तलेटी की धर्मशाला में बर्तन, गादी, तकिया आदि सुविधाएँ दी जाती थीं। और यात्रियों को भाता दिया जाता था. वहां से सिद्ध शिला और कोटि शिला जैसे स्थानों तक पहुँचने के लिए डोली और बच्चों के लिए ‘उपडामनिया’ मजदूर उपलब्ध रहते थे। उस समय यात्रियों को 3 आना (लगभग 19 पैसे) का ‘मुंडका वेरो’ (यात्री कर) देना पड़ता था।
गुजरात के
मेहसाणा जिले के खेरालू तालुका में स्थित तारंगा पर्वत समुद्र तल से 364 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और अरावली
पर्वतमाला का हिस्सा है। चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता इसे और भी विशेष बनाती है।
इसके उत्तर में भेमपुरा और टिम्बा जैसे गाँव हैं, जबकि दक्षिण में कनोरिया, कुडा, और राजपर गाँव स्थित हैं। इसके पश्चिम
में तारंगा रेलवे स्टेशन है। By Road Ahmedabad to Taranga tirth Distance 3
hr 2 min (128.7 km) via Gandhinagar होता है।
इस
क्षेत्र में साबरमती नदी के स्रोत और अन्य जलधाराएँ भी हैं, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता में चार
चाँद लगाती हैं।
सन् 1165-1170 के आसपास, सोलंकी
वंश के राजा कुमारपाल के शासनकाल में तारंगा हिल पर श्री अजीतनाथ भगवान का भव्य
मंदिर बनवाया गया।
इस तीर्थ
की स्थापना के संदर्भ में श्री जिनमंडन गणिवर लिखते हैं: