17वीं शताब्दी में पूज्य आचार्य श्री विजयहिरसूरीजी महाराज अपने शिष्यों सहित इस पावन तीर्थ की यात्रा पर पधारे। विक्रम संवत 1666 में, उनके पट्टधर आचार्य श्री विजयसेनसूरीजी के पावन हस्तों से पोष सुदि 6 से महासुदि 6 तक, पूरे एक माह तक अनेक अंजनशलाका प्रतिष्ठाएँ संपन्न हुईं। संयोगवश, ठीक 342 वर्ष बाद, उसी शुभ दिवस—महासुदि 6 को—इस जिनालय की प्रतिष्ठा पुनः संपन्न हुई।
इस अवधि के बीच, मांगरोल निवासी प्रसिद्ध श्रेठी श्री सुंदरजी मकनजी ने इस जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1876 की महासुदि 8 के शुभ दिन संपन्न हुई।
14वीं शताब्दी में श्री धर्मघोषसूरीजी महाराज ने यहाँ यात्रा कर शत्रुंजय के पूर्व अधिष्ठायक श्री कपर्दी यक्ष को इस तीर्थ का अधिष्ठायक बनाया
इतिहास साक्षी है कि 18वीं शताब्दी तक इस तीर्थ स्थल की संघ की जाहोजलाली और महिमा अद्वितीय थी, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक गरिमा को दर्शाती है।
चन्द्रप्रभासपाटन शहर आज भी अनेक ऐतिहासिक स्मारकों, मूर्तियों, स्थापत्य कला आदि से समृद्ध है। इसके दक्षिण-पश्चिमी भाग में विशाल सागर की भव्य लहरें पानी से टकराती हुई आसमान को छू रही हैं तथा सागर की गर्जना यहां निरंतर प्रवाहित होती रहती है, जिससे यहां दिन-रात संगीत की शांतिपूर्ण ध्वनि प्रवाहित होती रहती है।



अतीत में इस तीर्थ स्थल पर अनेक जिन मंदिर स्थित थे, जो 19वीं शताब्दी में विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए। समय के प्रभाव से ये भव्य मंदिर धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण हो गए। अंततः, विक्रम संवत 1877 की महासुदी अष्टमी के शुभ दिन पर इस पवित्र स्थल का जीर्णोद्धार किया गया। तब से लेकर आज तक, यहाँ आठ जिनालय एक ही क्षेत्र में स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, एक मंदिर जैन समुदाय के निवास क्षेत्र में स्थित था, जो आज भी वहीं प्रतिष्ठित है।
शहर के केंद्र में, बाजार के स्तर से 85 फीट की ऊँचाई पर स्थित, यह भव्य जिनालय अपनी तीन मंजिला ऊँचाई, तीन विशाल शिखरों, नौ गर्भगृहों और 100×70 फीट की भव्य संरचना के साथ पूरे भारत में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है। इसकी गगनचुंबी उपस्थिति श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और भव्यता का अनुभव कराती है।
चंद्रप्रभास-पाटन महातीर्थ में इस मुख्य जिनालय के अतिरिक्त पाँच अन्य मंदिर भी स्थित हैं। इसके साथ ही यहाँ श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु भव्य उपाश्रय, भोजनालय, आयंबिल भवन, धर्मशाला, देरासरजी की पेढीं, जैन पाठशाला, पुस्तकालय और जैन चिकित्सालय जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
यह प्राचीन एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध तीर्थ स्थल पूरे भारत से आने वाले तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ न केवल जैन श्रद्धालु, बल्कि अन्य धर्मों के पर्यटक भी इस भव्य मंदिर की भव्यता से अभिभूत होते हैं और जैन धर्म के सिद्धांतों का अनुमोदन करते हैं।
Add Your Heading Text Here
