मंदिर के मंडोवर और शिखर चावल की भूसी से भरे हैं। इसके गुम्बदों और स्तंभों पर यक्ष, गंधर्व और नर्तकों की मूर्तियों का शिल्प भी देखने लायक है। हालांकि, यह मंदिर आबू के मंदिरों की तरह अत्यंत बारीक नहीं है, फिर भी इसकी भव्यता और ऊँचाई अपनी ओर आकर्षित करती है।
स्मारक और दिगंबर समुदाय के मंदिर: तारंगा में दिगंबर जैन समाज के भी कई मंदिर और स्मारक हैं। यहाँ के प्राचीन संभवनाथ जिनालय में दिगंबर संप्रदाय के अनुयायियों का समर्पण देखने को मिलता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के निकट एक कीर्तिस्तंभ स्थापित है, जो राजा कुमारपाल के समय का है। यहाँ अन्य जैन तीर्थों का भी विवरण मिलता है, जिनके संरक्षण का कार्य समय-समय पर होता रहा है।
संरक्षण और आज का तारंगा तीर्थ: आज, तारंगा जैन तीर्थ एक संरक्षित धरोहर स्थल है। यहाँ श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय के पाँच-पाँच मंदिर हैं, जिनमें से कुछ आधुनिक सराय और भोजनालयों के साथ-साथ भक्तों के लिए ठहरने की भी व्यवस्था है। यह स्थल अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के कारण आज भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और यहाँ हर वर्ष लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं।

तारंगा, जिसे कभी “तारानगर” के नाम से जाना जाता था, यह प्राचीन भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास का प्रतीक है। यह स्थल तारणमाता की गुफा और तारादेवी के स्मारकों के कारण प्रसिद्ध है। तारणमाता की गुफा इस स्थान की पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं का केंद्र है।
यह क्षेत्र वेणीवत्सराज जैसे सूर्यवंशी शासकों और उनके साहसिक कारनामों के लिए भी जाना जाता है। उनकी कथा आर्य और नाग जातियों के बीच संबंधों, संघर्षों, और सांस्कृतिक सामंजस्य की प्रतीक है।
Taranga Tirth History में तारंगा का नाम तारणमाता की गुफा से जुड़ा है, जो पहाड़ी की तलहटी से उत्तर दिशा में स्थित है। यहाँ तारादेवी की पूजा की जाती है, जो बौद्ध धर्म में एक पवित्र देवी मानी जाती हैं। वर्तमान में, हिंदू समुदाय भी उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजता है। यह स्थान “आसो सूद 14” के दिन आयोजित मेले के लिए प्रसिद्ध है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है।
तारंगा, जिसे कभी “तारानगर” के नाम से जाना जाता था, यह प्राचीन भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास का प्रतीक है। यह स्थल तारणमाता की गुफा और तारादेवी के स्मारकों के कारण प्रसिद्ध है। तारणमाता की गुफा इस स्थान की पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं का केंद्र है।
यह क्षेत्र वेणीवत्सराज जैसे सूर्यवंशी शासकों और उनके साहसिक कारनामों के लिए भी जाना जाता है। उनकी कथा आर्य और नाग जातियों के बीच संबंधों, संघर्षों, और सांस्कृतिक सामंजस्य की प्रतीक है।
तारणमाता और तारादेवी
Taranga Tirth History में तारंगा का नाम तारणमाता की गुफा से जुड़ा है, जो पहाड़ी की तलहटी से उत्तर दिशा में स्थित है। यहाँ तारादेवी की पूजा की जाती है, जो बौद्ध धर्म में एक पवित्र देवी मानी जाती हैं। वर्तमान में, हिंदू समुदाय भी उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजता है। यह स्थान “आसो सूद 14” के दिन आयोजित मेले के लिए प्रसिद्ध है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है।